Thursday, June 16, 2011

जब स्वामी निगमानंद जी लम्बे अरसे तक अनशन पर रहे तब मीडिया कहां था ?

1. स्वामी निगमानंद जी की मौत के बाद रोना रोने वाला मीडिया क्या देश को बताने का कष्ट करेगा कि जब स्वामी जी लम्बे अरसे तक अनशन पर रहे तब कहां था ? अब रोना रोने के बजाए उन मीडिया कर्मियों के विरूद्ध सख्त कारवाई की जाए जिनके एरिया में अनशन किया गया. मीडिया बिकाऊ है के आरोप बहुत पहले लग चुके हैं. ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि मीडिया कि वास्तविक स्थिति की जांच स्वयं मीडिया CBI से करवाए. हो सकता है इनकी माफिया से सांठ-गांठ हो. चाहे न हो फिर भी उस इलाके के मीडिया कर्मी अपनी जिम्मेदारी से बच नही सकते.
2. अजीब विडंबना है पत्रकार " डे " के लिए जहां मीडिया ज़मीन आसमान एक कर रहा है वहीं एक अन्य पत्रकार के शव मिलने पर चुप है. यह तो वैसा ही है जैसे कांग्रेस " अन्ना व बाबा " के अनशन का विरोध कर रही है तथा निगमानंद जी प्रकरण में जमीन-आसमान एक करने में लगी है.
3. अन्ना के " लोकपाल " ने उन नेताओं व पार्टी की पोल खोल दी जो भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु बयान तक सीमित हैं.
4. अखबार पंजाब केसरी हिसार में छपी ख़बर " लोकसभा अध्यक्ष ने PAC रिपोर्ट वापिस लौटा कर PAC अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को झटका दिया " निंदनीय है. अखबार का काम ख़बर देना है न कि ख़बर बनाना. फिर भी अखबार इसे झटका मनाता है तो वास्तव में यह देश व ईमानदारी को झटका है क्योंकि इसमें " एटोर्नी जनरल, केबिनेट सचिवालय व PMO " तक को कटघरे में खड़ा किया गया है. ख़बर से तो दाल में काला है की आशंका हो रही है. सत्य क्या है अखबार जाने.    

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