Saturday, September 3, 2011

भ्रष्टाचार को समाप्त करना व काले धन को वापस लाने हेतु कार्यवाही करना सरकार की जुम्मेदारी व फ़र्ज़ है. लेकिन

सिरसा 03 सितम्बर 2011.भ्रष्टाचार को समाप्त करना व काले धन को वापस लाने हेतु कार्यवाही करना सरकार की जुम्मेदारी व फ़र्ज़ है. लेकिन इसके बजाए सरकार कार्यवाही उन देश व समाज हितैषियों के विरूद्ध कर रही है जो भ्रष्टाचार, कालेधन के विरोध में आवाज़ उठाते हैं, आन्दोलन करते है, धरना देते है या अनशन करते है. सरकार की इस सोच की जितनी निंदा की जाए कम  है.   

सिरसा 02 सितम्बर 2011.
1.) IBN-7 के "एजेंडा" कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार श्री अलोक मेहता ने बड़ी ही बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुए अन्ना समर्थन में आए लाखों लोगों को "जनता" नहीं "भीड़" थी कह कर वास्तव में निंदनीय कार्य के साथ-साथ पत्रकारिता का खुल कर दुरूपयोग भी किया.
2.) अजाब विडम्बना है जबसे P.M. की पिछले दिनों हुई प्रेस कांफ्रेंस में 5 पत्रकारों के साथ इसको क्या बुलाया कि उस दिन बाद तो इस महानुभाव के तो बोलने के तौर तरीके पूर्ण रूप से बदल गए. लगता है PMO ने जो इज्जत दी वह श्रीमान जी हजम नहीं कर पाए. यही कारण होगा कि "जनता" को "भीड़" यानी "जानवर" माना जा रहा है. अलोक मेहता की सोच की जितनी निंदा की जाए कम है.      
3.) पूर्व केन्द्रीय मंत्री थरूर ने जो JNU में कहा को ये बाते मंत्री पद त्यागने से पहले उस मीडिया को बतानी चाहिए थी जिसने गंभीर आरोपाधीन मोर्चा खोला. जिसकी बदौलत समझदार व ईमानदार मंत्री को मंत्री पद छोड़ना पड़ा.
4.) अन्ना के विरूद्ध जहर उगलने वालों को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि " अब चाहें कांग्रेस रोए या भाजपा, नहीं रुकेगा अन्ना का भ्रष्टाचार के विरूद्ध बजना बाजा "
सिरसा 01 सितम्बर 2011. 
प्रेस एशिया इंटरनेशनलनुसार जब बिहार के एक गाँव के स्कूल में बच्चों से पूछा गया कि उनका सपना क्या है ? तो 9 व 10 साल के बच्चों ने कहा " भर पेट खाना ". इस दयनीय हालात के फ़िक्र के बजाए सत्ताधारी JDU अध्यक्ष शरद यादव व सत्ता में रह चुकी RJD अध्यक्ष लालू यादव को फ़िक्र इस बात का है कि कहीं आदरणीय अन्ना का भ्रष्टाचाररोधी व देश हितैषी " जन लोकपाल " न बन जाए अपने आप में पुख्ता प्रमाण है इन्हें देश व समाज के हित से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे लोगों की जितनी निंदा की जाए कम है.              
सिरसा
31 अगस्त 2011.
श्री ओम पूरी व किरण बेदी ने जो देश के लोग बोलते हैं वही बोला को जन प्रतिनिधियों ने विशेषाधिकार हनन माना. लेकिन सांसद श्री शरद यादव ने जो कहा को क्या कहा जाए ? जैसे " हमारा तो काम ही पगड़ी उछालना है ". इसके साथ धर्म गुरु आदरणीय श्री भैयू जी सहित किरण बेदी जी व श्री ओम पूरी का मजाक उड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिस पर सांसदों ने मेजें थपथपा कर समर्थन दिया. क्या ऐसा करके सांसदों ने देश व संसद की छवि को धूमिल नहीं किया ? माननीय सांसदों को विशेषाधिकार के साथ जुम्मेदारी की चिंता होती तो 49 साल से लोकपाल व 18 साल से चुनाव सुधार बिल धूल नहीं चाट रहे होते. यही नहीं " बेनामी लेन-देन अधिनियम " 23 साल बाद भी लागू होने की स्थिति में नहीं है. वित्तमंत्रीनुसार लागू करने हेतु 23 साल में जरुरी नियम नहीं बन पाए. सत्र चल रहा है मेजे खाली पड़ी है. क्या यह देश की उस जनता का मजाक नहीं जिसने सांसदों को चुना ?

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