Monday, October 24, 2011

भारत में सबसे खतरनाक व जोखिम भरा कुछ है तो वह है जनहित में कार्य करना. अन्ना ने जनहित को लेकर जो


सिरसा 24 अक्तूबर 2011.
भारत में सबसे खतरनाक व जोखिम भरा कुछ है तो वह है जनहित में कार्य करना. अन्ना ने जनहित को लेकर जो अभियान चलाया उसका विरोध भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले ही नहीं बुद्धिजीवी कहलाने वाले भी कर रहे हैं. आजादी के लिए गाँधी जी ने "भारत छोड़ो" आन्दोलन चलाया. देश आजाद हुआ. आजादी के बाद जो हुआ देश जानता है. शहीद भगत सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ी भारतीयों ने उनके विरोध में गवाही देकर फांसी लगवा दी. स्वामी दयानंद के साथ क्या किया गया को देश जानता है. लेकिन देश के बहादुर लोग यह भी जानते हैं कि कुछ सिरफिरे लोग देशहितैषी अभियान में अड़चन डाल सकते, बदनाम कर सकते है लेकिन देशहितैषी कार्य को बंद नहीं करवा सकते, विफल नहीं कर सकते. कारण प्रकृति की कृपा व देश के लोगों का साथ देश हितैषी लोगों के साथ होना है. जिसकी जीवित मिशाल अन्ना है. 
2.) मान्यवर विनीत नारायण जी, आपका लेख "जनलोकपाल....." पढ़ कर लगा कि आपके साथ बीजेपी नीत राज में जो अन्याय हुआ उसका बदला अन्ना टीम व देश से लिया जा रहा है. आप अन्ना की मदद चाहें न करें लेकिन विरोध करके भ्रष्टाचार की मदद भी तो न करें. खुली बहस के बजाए आप जिनको लगता है कि यह जनलोकपाल शेखचिल्ली के ख़्वाब जैसा है उनको लेकर स्टैंडिंग कमेटी को वो मसौदा दें जो भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कारगर हो. विरोध में लिखने से पहले आप बार-बार अन्ना टीम ने जो सुझाव मांगे थे को लेकर कारगर सुझाव शेखचिल्ली का ख़्वाब कहने वालों से दिलवाते तो देशहित में होता. लगता है आप इन्टरनेट पर गए ही नहीं.
सिरसा 23 अक्तूबर 2011.
अन्ना टीम सदस्यों पर बेतुके आरोप लगाने से पहले स्वयंभू स्वामी अग्निवेश को देश को बताए.. 
1.) स्वामी / सन्यासी चुनाव लड़े. कहां तक उचित है ?
2.) चुनाव में कितना खर्चा लगा, धन कहां से आया ? 
3.) अन्ना टीम की कोर कमेटी का सदस्य होने के बावजूद आन्दोलन को विफल करवाने की साजिश क्यों व किसके कहने पर रची ? 
4.) कश्मीर अलगाववादी नेता के सामने "अमरनाथ यात्रा" एक ढोंग है कहने का करण क्या था ? 
5.) कोर्ट में पेश होने के बजाए जमानत पाने के लिए क्यों भगोड़े हुए ?
6.) अन्ना टीम से निकाले जाने के बाद ही दोष क्यों दिखाई देने लगे, पहले क्यों चुप रहे ? 
7.) जो किया जा रहा है उसे क्या माना जाए - देशभक्ति, अनैतिकता, स्वार्थ, स्तरहीनता, लालच, इर्ष्या, औछापन/पागलपन ?
8.) किया जा रहा है के पीछे कौन है ? 
9.) जो कर रहे हो वह सन्यासी धर्म के अनुरूप है ? 
10.) वास्तव में सन्यासी को सन्यासी धर्मनुसार क्या करना / नहीं करना चाहिए ? देश हित में देश को शुद्ध जानकारी दी जाए ? 
सिरसा 22 अक्तूबर 2011.
1.) पूर्व PM श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि केंद्र का भेजा हुआ एक रुपया आम आदमी तक जब पहुँचता है 15 पैसे रह जाता है को श्री राहुल गाँधी कई सालों से मान रहे हैं वहीं PM सहित देश के सभी राजनेता मान रहे है. लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार द्वारा सख्त बिल लाना तो दूर, सख्त लोकपाल की मांग करने वाले अन्ना को जेल तक में भेजा जाना अपने आप में प्रमाण है कि कथनी और करनी में अंतर है. अब तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आना के समर्थन का ढोल पीटने वाली BJP भी अन्ना को कमजोर करने के मौके की तलाश में रहती है. जाहिर है कि राजनैतिक दलों की कथनी और करनी एक नहीं है.
2.) विजय चोपड़ा साहिब, डॉ किरण बेदी पर की गई कांग्रेस नेता अल्वी की तीखी टिपण्णी क्या आप पर लागू नहीं होती ? आप भी तो दानी लोगों,संस्थाओं से खाद्य सामग्री व धनदान लेकर जरुरतमंदो व सरकार को भेजते हो. लेकिन जब सम्मानित होने का अवसर आता है तब सम्मानित कौन होता है आप जानते हैं ? क्या इसे शुद्ध रूप से नैतिक ईमानदारी के पलड़े में रखा जाना चाहिए ? शंका का समाधान आप ही कर सकते हैं. - पाठक सिरसा
सिरसा 20 अक्तूबर 2011.
1.)भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी, चोरबाजारी, काले धन, नकली नोट, नोट के बदले वोट, 49 सालों से लटक रहे लोकपाल बिल पर कविता न लिखने वाले भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले पर कविता लिख रहे है.
2.) कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में जगह नहीं, आतंकवादियों को फांसी न दी जाए, कश्मीर का विलय वैधानिक नहीं पर कविता लिखने वाले चुप क्यों रहे ? शहीदों की विधवाओं को पेट्रोल पम्प आबंटन करने पर भी न देना, आदर्श सोसाईटी में विधवाओं को घर न देने पर अन्ना पर कविता लिखने वाले क्यों चुप रहे ? जाहिर है कविता खेल के पीछे वही है जिन्होंने अन्ना टीम के सदस्यों पर हमले करवाए. ऐसे लोगों के कारनामो के करण देश 300 सालों तक गुलाम रहा. अब देश को अंग्रेजों के बजाए कालेधन,भ्रष्टाचारियों,का गुलाम  बना रहे है.
3.)  विजय चोपड़ा जी, देशहित में जिस तरह से श्री शरद पंवार ने UPA की पोल खोली को आपके अखबार ने मात्र 50 लाइनों में छापा वहीं देश हितैषी श्री अन्ना को बदनाम करने वालों के विचारों को 64 लाइनों में छाप कर साबित कर दिया कि अखबार नहीं चाहता कि देश में सख्त लोकपाल बने. क्या समाज विरोधी लोगों का साथ देकर अखबार ने उनको सही साबित नहीं किया जो आपके पिता व भाई के कातिल थे ? कम से कम आपके अखबार से तो कोई भी यह आशा नहीं कर सकता कि यह समाज विरोधियों को महत्व देगा. चोपड़ा जी आप तो जानते ही है कि देश 300 साल तक गुलाम देशद्रोहियों के करण ही रहा ऐसे में कोई देश हितैषी अन्ना का विरोध करता है तो आश्चर्य कैसा ?     
सिरसा 19 अक्तूबर 2011.
1.) यह एक कड़वी सचाई है कि जब-जब कोई महापुरुष देश व समाजहित के रास्ते पर चला तब-तब जहाँ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा वही समाजविरोधी लोगों ने स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी की तो जान तक ले ली. फिर भी हम समाज को सभ्य ही मानते हैं और समय समय पर दुहाई यही दी जाती है कि "सभ्य समाज" ऐसा बर्दाश नहीं करेगा, नहीं कर सकता. मात्र इतना कहने से क्या समाज वास्तव में सभ्य कहलाने लायक बन जाता है ? देश के सभ्य व बुद्धिजीवी लोगों को इस पर विचार करना चाहिए.
2.) जिन चैनलों व देश हितैषियों ने 26/11 के बाद देश को आतंकवाद व भ्रष्टाचार रहित बनाने तक लगातार संगर्ष की शपथ ली थी, तथा कुछ दिन पहले भी जो लोग व चैनल "India Against Corruption" के साथ भ्रष्टाचार मिटाने हेतु जुड़े थे के लिए अपने शुभ कार्य को अब अंजाम देने का अब सुनहरा समय आ गया है. अब इन सबको देश हित में तह दिल से खुले रूप से भ्रष्टाचारियों क सबक सिखाने हेतु लग जाना चाहिए. 
3.) शांति भूषण की बर्बरता से पिटाई, केजरीवाल पर हमला व अन्ना पर हमले की चेतावनी अपने आप में एक पुख्ता प्रमाण है कि भ्रष्ट लोग अन्ना टीम को कमजोर करने की बदनीयती से टीम सदस्यों पर हमला करवा रहे है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है. टीम अन्ना पर हुए हमलों की CBI अथवा सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में गहन जांच हो ताकि देश के सामने सच्चाई आ सके.
4.) विजय चोपड़ा जी, अन्ना टीम के करोड़ों सदस्यों में से हिसार के 2 लोगों को छोड़ने को आपके अखबार ने अपनी स्तरहीन व समाज विरोधी सोच को उजागर करते हुए इस तरह हवा दी है जैसे अन्ना टीम पर पहाड़ टूट पड़ा.
5.) अखबार पंजाब केसरी ने पाकिस्तानी PM के कश्मीर को लेकर भारत विरोधी बयान को पृष्ठ 2 पर धकेल कर देश को ऐसा संदेश देने कि घिनौनी कोशिश की है जैसे बयान का कोई महत्व ही नहीं. अखबार की इस सोच की जितनी निंदा की जाए कम है. 
सिरसा 18 अक्तूबर 2011.            
विजय चोपड़ा जी, आपके विचारनुसार आज देश न्याय प्राप्ति हेतु मीडिया की ओर देख रहा है पर लेखक "B.G. Verghese" ने अपने आज छपे लेख में लिख कर कि "जिस तरह मीडिया की सुर्ख़ियों में अविवेकपूर्ण ढंग से शेखियां भघारी जाती हैं और केवल व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को ही ध्यान में रख जाता है, वह उचित सीमाओं का उलंघन है" चार चाँद लगाने का कार्य कर दिया. न्याय के नाम पर कृपया "पेड न्यूज़" पर एक लेख लिखे का अनुरोध है.
सिरसा 17 अक्तूबर 2011.
1.)  हिसार चुनाव पर अन्ना के श्री केजरीवाल का कहना कि "कांग्रेस की हार में योगदान है न कि किसी की जीत में" की जितनी प्रशंसा की जाए कम है मीडिया को भी इसे शुद्ध रूप में लेना चाहिए. हर बात में बाल की खाल निकालना देश हित में नहीं होता. TV चैनेलों पर बुद्धिजीवी ठीक ऐसी ही बहस कर रहे है जैसे किसी के घर "पुत्र रत्न" पर बधाई देने के साथ-साथ यह भी कहा जाए कि पता नहीं नवजात शिशु की मौत कब हो जाए. कम से कम बुद्धिजीवियों को तो नकारात्मक विचारों से नहीं चिपना चाहिए.
2.) भगवान ने ठीक समय पर श्री कुलदीप बिश्नोई का घमण्ड तोड़ कर आगे से घमण्ड न करने की चेतावनी देकर एक बड़ी कृपा की. जैसे-जैसे जीत के वोटों की संख्या बढती गई वैसे-वैसे श्री कुलदीप का घमण्ड बभी बढता गया. घमण्ड इतना बढ़ा कि जीत में अन्ना फैक्टर को नकारना शुरू कर दिया. जिसका सबक प्रकृति ने हाथों हाथ दे दिया. कुलदीप को अब से ही अगर सफल होना है तो हवा में उड़ने कि बजाए जमीन पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए.  
3.) विजय चोपड़ा जी आपने लेख में आपने लिखा कि "एक ओर सरकार स्वयं ही महंगाई बड़ा रही है दूसरी ओर इस पर चिंता जताते हुए बैठकें करती है तो जनता की समझ से बाहर है". लेकिन आपने स्वयं ही अपने धारदार लेख की धार को शुरूआती लाइन "सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई थमने का संकेत नहीं " लिख कर कुंद कर दिया भी जनता की समझ से बाहर है. क्योंकि एक साँस में आप सरकार का गुणगान करते है वहीं दूसरी साँस में सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं. जिसे "without fear without fever" वाली पत्रकारिता के अनुरूप नहीं कहा जा सकता.
सिरसा 16 अक्तूबर 2011.
1.) प्रभारी IBN-7, कहावत "गुड़ गोबर करना" पूर्णरूप से कार्यक्रम "मुद्दा" पर एंकर की बेजां दखल से लागू होती है. लेकिन दिनांक 15 अक्तूबर को महिला एंकर ने "गोबर" को भी बिगाड़ कर रख दिया. कृपया एक को हटा लीजिये"कार्यक्रम को या बेजां दखल को". - दर्शक सिरसा (हरियाणा)  
2.) विजय चोपड़ा साहिब, कुछ दिन पहले आपने मीडिया पूर्ण ईमानदारी व लगन से देश की सेवा कर रहा है का ढोल पिटते हुए आपने कहा कि आज देश न्याय प्राप्ति के लिए न्यायालय के साथ-साथ मीडिया की ओर देख रहा है. हम तो उस वक्त भी आपकी सत्य रहित घोषणा से सहमत नहीं थे. आपकी घोषणा कितनी सत्य थी का प्रमाण "सतना" के तथा कथित ईमानदार पत्रकारों ने 500-500 व 1000-1000 के नोट लेकर जहाँ "चार चाँद" लगाए वहीं आपके अखबार में न्यायप्रिय लेखक M.J. अकबर के लेख ने तो आपको व पूरे मीडिया जगत को दर्पण ही दिखा दिया. फैसला आप पर छोड़ा जाता है कि "वाह-वही व लानत" का पात्र कौन है ? 
3.) माननीय कल्याणी शंकर जी, आपका बे सिर-पैर वाला लेख "टीम अन्ना का राजनैतिक चेहरा सामने आने लगा" पढ़ा. आपके इस लेख पर कहावत "मुर्दा बोले कफ़न फाड़े" पूरी तरह से लागू होती है.  
सिरसा 15 अक्तूबर 2011.
सेवा में, श्री मोहन भगवत जी, सर संघ संचालक, नागपुर. मान्यवर, बड़े ही दुःख के साथ आपको लिख रहे हैं कि एक ओर दिग्गी राजा संघ को लेकर अन्ना को बदनाम कर रहा है. वहीं संघ आए दिन बयान देकर कांग्रेस को खुश करने के लिए अन्ना व देश की आम जनता के लिए मुसीबत बढ़ा रहा है. वास्तव में घिनौना व निंदनीय है. 
2.) वास्तव में संघ भ्रष्टाचार का विरोधी है तो इसकी याद अन्ना अनशन के बाद क्यों आई ? पहले क्यों सोया रहा ? BJP राज्यों में हो रहे भ्रष्टाचार का विरोध क्यों नहीं किया ? क्यों BJP राज्यों में सख्त लोकायुक्त नहीं बनाया गया ?
3.) भ्रष्ट सुखराम का पहले विरोध किया गया ओर मौका मिलते ही उसके साथ मिलकर सरकार बना ली. 
4.) पंजाब उग्रवाद को लेकर श्री अटल जी बार-बार कहते थे "जब तक पंजाब में बादल है तब तक उग्रवाद रहेगा" मौका मिला बादल के साथ सरकार बना ली. आज पंजाब में BJP किसके साथ है ? हम आपसे देशहित में प्रार्थना करते हैं, कृपया देश व समाज पर  इस प्रकार के बयानों को न देकर रहम कीजिये.
5.) भागवत जी, क्या यह घिनौना नाटक नहीं है कि एक ओर अन्ना समर्थन के बयान दिए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर BJP नेता श्री बलबीर पुंज अखबार में छपने वाले लेख में आदरणीय अन्ना को बदनाम करने की मंशा को लेकर उन पर शब्द रूपी कीचड़ फेंक रहा है. ऐसा क्यों व किसके इशारे पर किया जा रहा है ? ऐसी घिनौनी सोच के पीछे कौन है - "संघ, BJP या कांग्रेस" ?                 - आदर सहित 
सिरसा 14 अक्तूबर 2011.
राजनैतिक पार्टी घर की, घर का अखबार जिसमे जैसा चाहो लिखो जिस पर चाहो कीचड़ फेंको. लेकिन ठाकरे साहिब मात्र ऐसा करने से कोई देश भगत बहादुर नहीं बन जाता. प्रशांत भूषण पर तो आपने अपनी भड़ास निकाल ली लेकिन अगर आप वास्तव में बहादुर या देश भगत हैं तो अपने बहादुर बेटे व इस गुंडा टोल को लेकर उन लोगों के घर क्यों नहीं गए जिन्होंने आतंकियों को फांसी न देने की मांग की ? कश्मीर के अलगाववादियों के घर क्यों नहीं गए ? कहावत है कि मात्र नाख़ून कटवाने से कोई शहीद नहीं हो जाता. ठीक ऐसे ही घर के अखबार में लिखने मात्र से कोई देश भगत व बहादुर नहीं हो सकता. देश जानता है कि अपने अन्ना पर (जिनके भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष से सभी स्वार्थी लोग तिलमिला रहे हैं) प्रहार करने की स्तरहीन सोच के आधीन होकर लिखा है. जो वास्तव में निंदनीय है.  

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