Monday, October 24, 2011

भारत में सबसे खतरनाक व जोखिम भरा कुछ है तो वह है जनहित में कार्य करना. अन्ना ने जनहित को लेकर जो


सिरसा 24 अक्तूबर 2011.
भारत में सबसे खतरनाक व जोखिम भरा कुछ है तो वह है जनहित में कार्य करना. अन्ना ने जनहित को लेकर जो अभियान चलाया उसका विरोध भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले ही नहीं बुद्धिजीवी कहलाने वाले भी कर रहे हैं. आजादी के लिए गाँधी जी ने "भारत छोड़ो" आन्दोलन चलाया. देश आजाद हुआ. आजादी के बाद जो हुआ देश जानता है. शहीद भगत सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ी भारतीयों ने उनके विरोध में गवाही देकर फांसी लगवा दी. स्वामी दयानंद के साथ क्या किया गया को देश जानता है. लेकिन देश के बहादुर लोग यह भी जानते हैं कि कुछ सिरफिरे लोग देशहितैषी अभियान में अड़चन डाल सकते, बदनाम कर सकते है लेकिन देशहितैषी कार्य को बंद नहीं करवा सकते, विफल नहीं कर सकते. कारण प्रकृति की कृपा व देश के लोगों का साथ देश हितैषी लोगों के साथ होना है. जिसकी जीवित मिशाल अन्ना है. 
2.) मान्यवर विनीत नारायण जी, आपका लेख "जनलोकपाल....." पढ़ कर लगा कि आपके साथ बीजेपी नीत राज में जो अन्याय हुआ उसका बदला अन्ना टीम व देश से लिया जा रहा है. आप अन्ना की मदद चाहें न करें लेकिन विरोध करके भ्रष्टाचार की मदद भी तो न करें. खुली बहस के बजाए आप जिनको लगता है कि यह जनलोकपाल शेखचिल्ली के ख़्वाब जैसा है उनको लेकर स्टैंडिंग कमेटी को वो मसौदा दें जो भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कारगर हो. विरोध में लिखने से पहले आप बार-बार अन्ना टीम ने जो सुझाव मांगे थे को लेकर कारगर सुझाव शेखचिल्ली का ख़्वाब कहने वालों से दिलवाते तो देशहित में होता. लगता है आप इन्टरनेट पर गए ही नहीं.
सिरसा 23 अक्तूबर 2011.
अन्ना टीम सदस्यों पर बेतुके आरोप लगाने से पहले स्वयंभू स्वामी अग्निवेश को देश को बताए.. 
1.) स्वामी / सन्यासी चुनाव लड़े. कहां तक उचित है ?
2.) चुनाव में कितना खर्चा लगा, धन कहां से आया ? 
3.) अन्ना टीम की कोर कमेटी का सदस्य होने के बावजूद आन्दोलन को विफल करवाने की साजिश क्यों व किसके कहने पर रची ? 
4.) कश्मीर अलगाववादी नेता के सामने "अमरनाथ यात्रा" एक ढोंग है कहने का करण क्या था ? 
5.) कोर्ट में पेश होने के बजाए जमानत पाने के लिए क्यों भगोड़े हुए ?
6.) अन्ना टीम से निकाले जाने के बाद ही दोष क्यों दिखाई देने लगे, पहले क्यों चुप रहे ? 
7.) जो किया जा रहा है उसे क्या माना जाए - देशभक्ति, अनैतिकता, स्वार्थ, स्तरहीनता, लालच, इर्ष्या, औछापन/पागलपन ?
8.) किया जा रहा है के पीछे कौन है ? 
9.) जो कर रहे हो वह सन्यासी धर्म के अनुरूप है ? 
10.) वास्तव में सन्यासी को सन्यासी धर्मनुसार क्या करना / नहीं करना चाहिए ? देश हित में देश को शुद्ध जानकारी दी जाए ? 
सिरसा 22 अक्तूबर 2011.
1.) पूर्व PM श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि केंद्र का भेजा हुआ एक रुपया आम आदमी तक जब पहुँचता है 15 पैसे रह जाता है को श्री राहुल गाँधी कई सालों से मान रहे हैं वहीं PM सहित देश के सभी राजनेता मान रहे है. लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार द्वारा सख्त बिल लाना तो दूर, सख्त लोकपाल की मांग करने वाले अन्ना को जेल तक में भेजा जाना अपने आप में प्रमाण है कि कथनी और करनी में अंतर है. अब तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आना के समर्थन का ढोल पीटने वाली BJP भी अन्ना को कमजोर करने के मौके की तलाश में रहती है. जाहिर है कि राजनैतिक दलों की कथनी और करनी एक नहीं है.
2.) विजय चोपड़ा साहिब, डॉ किरण बेदी पर की गई कांग्रेस नेता अल्वी की तीखी टिपण्णी क्या आप पर लागू नहीं होती ? आप भी तो दानी लोगों,संस्थाओं से खाद्य सामग्री व धनदान लेकर जरुरतमंदो व सरकार को भेजते हो. लेकिन जब सम्मानित होने का अवसर आता है तब सम्मानित कौन होता है आप जानते हैं ? क्या इसे शुद्ध रूप से नैतिक ईमानदारी के पलड़े में रखा जाना चाहिए ? शंका का समाधान आप ही कर सकते हैं. - पाठक सिरसा
सिरसा 20 अक्तूबर 2011.
1.)भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी, चोरबाजारी, काले धन, नकली नोट, नोट के बदले वोट, 49 सालों से लटक रहे लोकपाल बिल पर कविता न लिखने वाले भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले पर कविता लिख रहे है.
2.) कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में जगह नहीं, आतंकवादियों को फांसी न दी जाए, कश्मीर का विलय वैधानिक नहीं पर कविता लिखने वाले चुप क्यों रहे ? शहीदों की विधवाओं को पेट्रोल पम्प आबंटन करने पर भी न देना, आदर्श सोसाईटी में विधवाओं को घर न देने पर अन्ना पर कविता लिखने वाले क्यों चुप रहे ? जाहिर है कविता खेल के पीछे वही है जिन्होंने अन्ना टीम के सदस्यों पर हमले करवाए. ऐसे लोगों के कारनामो के करण देश 300 सालों तक गुलाम रहा. अब देश को अंग्रेजों के बजाए कालेधन,भ्रष्टाचारियों,का गुलाम  बना रहे है.
3.)  विजय चोपड़ा जी, देशहित में जिस तरह से श्री शरद पंवार ने UPA की पोल खोली को आपके अखबार ने मात्र 50 लाइनों में छापा वहीं देश हितैषी श्री अन्ना को बदनाम करने वालों के विचारों को 64 लाइनों में छाप कर साबित कर दिया कि अखबार नहीं चाहता कि देश में सख्त लोकपाल बने. क्या समाज विरोधी लोगों का साथ देकर अखबार ने उनको सही साबित नहीं किया जो आपके पिता व भाई के कातिल थे ? कम से कम आपके अखबार से तो कोई भी यह आशा नहीं कर सकता कि यह समाज विरोधियों को महत्व देगा. चोपड़ा जी आप तो जानते ही है कि देश 300 साल तक गुलाम देशद्रोहियों के करण ही रहा ऐसे में कोई देश हितैषी अन्ना का विरोध करता है तो आश्चर्य कैसा ?     
सिरसा 19 अक्तूबर 2011.
1.) यह एक कड़वी सचाई है कि जब-जब कोई महापुरुष देश व समाजहित के रास्ते पर चला तब-तब जहाँ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा वही समाजविरोधी लोगों ने स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी की तो जान तक ले ली. फिर भी हम समाज को सभ्य ही मानते हैं और समय समय पर दुहाई यही दी जाती है कि "सभ्य समाज" ऐसा बर्दाश नहीं करेगा, नहीं कर सकता. मात्र इतना कहने से क्या समाज वास्तव में सभ्य कहलाने लायक बन जाता है ? देश के सभ्य व बुद्धिजीवी लोगों को इस पर विचार करना चाहिए.
2.) जिन चैनलों व देश हितैषियों ने 26/11 के बाद देश को आतंकवाद व भ्रष्टाचार रहित बनाने तक लगातार संगर्ष की शपथ ली थी, तथा कुछ दिन पहले भी जो लोग व चैनल "India Against Corruption" के साथ भ्रष्टाचार मिटाने हेतु जुड़े थे के लिए अपने शुभ कार्य को अब अंजाम देने का अब सुनहरा समय आ गया है. अब इन सबको देश हित में तह दिल से खुले रूप से भ्रष्टाचारियों क सबक सिखाने हेतु लग जाना चाहिए. 
3.) शांति भूषण की बर्बरता से पिटाई, केजरीवाल पर हमला व अन्ना पर हमले की चेतावनी अपने आप में एक पुख्ता प्रमाण है कि भ्रष्ट लोग अन्ना टीम को कमजोर करने की बदनीयती से टीम सदस्यों पर हमला करवा रहे है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है. टीम अन्ना पर हुए हमलों की CBI अथवा सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में गहन जांच हो ताकि देश के सामने सच्चाई आ सके.
4.) विजय चोपड़ा जी, अन्ना टीम के करोड़ों सदस्यों में से हिसार के 2 लोगों को छोड़ने को आपके अखबार ने अपनी स्तरहीन व समाज विरोधी सोच को उजागर करते हुए इस तरह हवा दी है जैसे अन्ना टीम पर पहाड़ टूट पड़ा.
5.) अखबार पंजाब केसरी ने पाकिस्तानी PM के कश्मीर को लेकर भारत विरोधी बयान को पृष्ठ 2 पर धकेल कर देश को ऐसा संदेश देने कि घिनौनी कोशिश की है जैसे बयान का कोई महत्व ही नहीं. अखबार की इस सोच की जितनी निंदा की जाए कम है. 
सिरसा 18 अक्तूबर 2011.            
विजय चोपड़ा जी, आपके विचारनुसार आज देश न्याय प्राप्ति हेतु मीडिया की ओर देख रहा है पर लेखक "B.G. Verghese" ने अपने आज छपे लेख में लिख कर कि "जिस तरह मीडिया की सुर्ख़ियों में अविवेकपूर्ण ढंग से शेखियां भघारी जाती हैं और केवल व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को ही ध्यान में रख जाता है, वह उचित सीमाओं का उलंघन है" चार चाँद लगाने का कार्य कर दिया. न्याय के नाम पर कृपया "पेड न्यूज़" पर एक लेख लिखे का अनुरोध है.
सिरसा 17 अक्तूबर 2011.
1.)  हिसार चुनाव पर अन्ना के श्री केजरीवाल का कहना कि "कांग्रेस की हार में योगदान है न कि किसी की जीत में" की जितनी प्रशंसा की जाए कम है मीडिया को भी इसे शुद्ध रूप में लेना चाहिए. हर बात में बाल की खाल निकालना देश हित में नहीं होता. TV चैनेलों पर बुद्धिजीवी ठीक ऐसी ही बहस कर रहे है जैसे किसी के घर "पुत्र रत्न" पर बधाई देने के साथ-साथ यह भी कहा जाए कि पता नहीं नवजात शिशु की मौत कब हो जाए. कम से कम बुद्धिजीवियों को तो नकारात्मक विचारों से नहीं चिपना चाहिए.
2.) भगवान ने ठीक समय पर श्री कुलदीप बिश्नोई का घमण्ड तोड़ कर आगे से घमण्ड न करने की चेतावनी देकर एक बड़ी कृपा की. जैसे-जैसे जीत के वोटों की संख्या बढती गई वैसे-वैसे श्री कुलदीप का घमण्ड बभी बढता गया. घमण्ड इतना बढ़ा कि जीत में अन्ना फैक्टर को नकारना शुरू कर दिया. जिसका सबक प्रकृति ने हाथों हाथ दे दिया. कुलदीप को अब से ही अगर सफल होना है तो हवा में उड़ने कि बजाए जमीन पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए.  
3.) विजय चोपड़ा जी आपने लेख में आपने लिखा कि "एक ओर सरकार स्वयं ही महंगाई बड़ा रही है दूसरी ओर इस पर चिंता जताते हुए बैठकें करती है तो जनता की समझ से बाहर है". लेकिन आपने स्वयं ही अपने धारदार लेख की धार को शुरूआती लाइन "सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई थमने का संकेत नहीं " लिख कर कुंद कर दिया भी जनता की समझ से बाहर है. क्योंकि एक साँस में आप सरकार का गुणगान करते है वहीं दूसरी साँस में सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं. जिसे "without fear without fever" वाली पत्रकारिता के अनुरूप नहीं कहा जा सकता.
सिरसा 16 अक्तूबर 2011.
1.) प्रभारी IBN-7, कहावत "गुड़ गोबर करना" पूर्णरूप से कार्यक्रम "मुद्दा" पर एंकर की बेजां दखल से लागू होती है. लेकिन दिनांक 15 अक्तूबर को महिला एंकर ने "गोबर" को भी बिगाड़ कर रख दिया. कृपया एक को हटा लीजिये"कार्यक्रम को या बेजां दखल को". - दर्शक सिरसा (हरियाणा)  
2.) विजय चोपड़ा साहिब, कुछ दिन पहले आपने मीडिया पूर्ण ईमानदारी व लगन से देश की सेवा कर रहा है का ढोल पिटते हुए आपने कहा कि आज देश न्याय प्राप्ति के लिए न्यायालय के साथ-साथ मीडिया की ओर देख रहा है. हम तो उस वक्त भी आपकी सत्य रहित घोषणा से सहमत नहीं थे. आपकी घोषणा कितनी सत्य थी का प्रमाण "सतना" के तथा कथित ईमानदार पत्रकारों ने 500-500 व 1000-1000 के नोट लेकर जहाँ "चार चाँद" लगाए वहीं आपके अखबार में न्यायप्रिय लेखक M.J. अकबर के लेख ने तो आपको व पूरे मीडिया जगत को दर्पण ही दिखा दिया. फैसला आप पर छोड़ा जाता है कि "वाह-वही व लानत" का पात्र कौन है ? 
3.) माननीय कल्याणी शंकर जी, आपका बे सिर-पैर वाला लेख "टीम अन्ना का राजनैतिक चेहरा सामने आने लगा" पढ़ा. आपके इस लेख पर कहावत "मुर्दा बोले कफ़न फाड़े" पूरी तरह से लागू होती है.  
सिरसा 15 अक्तूबर 2011.
सेवा में, श्री मोहन भगवत जी, सर संघ संचालक, नागपुर. मान्यवर, बड़े ही दुःख के साथ आपको लिख रहे हैं कि एक ओर दिग्गी राजा संघ को लेकर अन्ना को बदनाम कर रहा है. वहीं संघ आए दिन बयान देकर कांग्रेस को खुश करने के लिए अन्ना व देश की आम जनता के लिए मुसीबत बढ़ा रहा है. वास्तव में घिनौना व निंदनीय है. 
2.) वास्तव में संघ भ्रष्टाचार का विरोधी है तो इसकी याद अन्ना अनशन के बाद क्यों आई ? पहले क्यों सोया रहा ? BJP राज्यों में हो रहे भ्रष्टाचार का विरोध क्यों नहीं किया ? क्यों BJP राज्यों में सख्त लोकायुक्त नहीं बनाया गया ?
3.) भ्रष्ट सुखराम का पहले विरोध किया गया ओर मौका मिलते ही उसके साथ मिलकर सरकार बना ली. 
4.) पंजाब उग्रवाद को लेकर श्री अटल जी बार-बार कहते थे "जब तक पंजाब में बादल है तब तक उग्रवाद रहेगा" मौका मिला बादल के साथ सरकार बना ली. आज पंजाब में BJP किसके साथ है ? हम आपसे देशहित में प्रार्थना करते हैं, कृपया देश व समाज पर  इस प्रकार के बयानों को न देकर रहम कीजिये.
5.) भागवत जी, क्या यह घिनौना नाटक नहीं है कि एक ओर अन्ना समर्थन के बयान दिए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर BJP नेता श्री बलबीर पुंज अखबार में छपने वाले लेख में आदरणीय अन्ना को बदनाम करने की मंशा को लेकर उन पर शब्द रूपी कीचड़ फेंक रहा है. ऐसा क्यों व किसके इशारे पर किया जा रहा है ? ऐसी घिनौनी सोच के पीछे कौन है - "संघ, BJP या कांग्रेस" ?                 - आदर सहित 
सिरसा 14 अक्तूबर 2011.
राजनैतिक पार्टी घर की, घर का अखबार जिसमे जैसा चाहो लिखो जिस पर चाहो कीचड़ फेंको. लेकिन ठाकरे साहिब मात्र ऐसा करने से कोई देश भगत बहादुर नहीं बन जाता. प्रशांत भूषण पर तो आपने अपनी भड़ास निकाल ली लेकिन अगर आप वास्तव में बहादुर या देश भगत हैं तो अपने बहादुर बेटे व इस गुंडा टोल को लेकर उन लोगों के घर क्यों नहीं गए जिन्होंने आतंकियों को फांसी न देने की मांग की ? कश्मीर के अलगाववादियों के घर क्यों नहीं गए ? कहावत है कि मात्र नाख़ून कटवाने से कोई शहीद नहीं हो जाता. ठीक ऐसे ही घर के अखबार में लिखने मात्र से कोई देश भगत व बहादुर नहीं हो सकता. देश जानता है कि अपने अन्ना पर (जिनके भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष से सभी स्वार्थी लोग तिलमिला रहे हैं) प्रहार करने की स्तरहीन सोच के आधीन होकर लिखा है. जो वास्तव में निंदनीय है.  

Thursday, October 13, 2011

शायद यही वजह है कि दिग्गी राजा साहिब एक कद्दावर नेता होने के बावजूद पिछले कई महीनों से साधारण कार्यकर्त्ता वाले कार्य में लगे हुए हैं...........


सिरसा 14 अक्तूबर 2011.
1.) देश स्पष्ट देख रहा है कि सरकार को भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले अन्ना के साथ-साथ उनके शांतिप्रिय समर्थक भी फूटी आँख नहीं सुहाते.
2.) श्री दिग्विजय सिंह जी का देश व टीम अन्ना को आभारी होना चाहिए क्योंकि अन्ना पर लगातार प्रहार करके परोक्ष रूप से ये मान रहे है कि कांगेस को भ्रष्टाचार का विरोध व विरोधी मंजूर नहीं है. इस शुभ कार्य के लिए दिग्गी राजा की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. अगर वास्तव में ऐसा नहीं है तो देश हितैषी अन्ना जो भ्रष्टाचार रोधी सख्त लोकपाल चाहते हैं को बादनाम करने के बजाए समर्थन क्यों नहीं दिया जाता ?
3.) श्री प्रशांत भूषण पर जानलेवा हमला साधारण नहीं है. इसके पीछे बड़ी साजिश के होने को नाकारा नहीं जा सकता. यह एक बड़े स्तर की जांच का विषय है.
4.) आपार शक्तिशाली प्रकृति "रंक को राजा व राजा को रंक" बना सकती/देती है. राजनीति में कभी राजा माने जाने वाले ठाकुर अमर सिंह की आज जो हालत है देश देख रहा है. लगता है प्रकृति ठाकुर दिग्गी राजा जो राजनीति में राजा ही है से कोई हिसाब लेना चाहती है शायद यही वजह है कि दिग्गी राजा साहिब एक कद्दावर नेता होने के बावजूद पिछले कई महीनों से साधारण कार्यकर्त्ता वाले कार्य में लगे हुए हैं.

Tuesday, October 11, 2011

अन्ना को कांग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस विरोधी लोगों से घिरा हुआ लिख रहे है. जबकि अखबार में लेख लिखने वाले बुद्धिजीवी समय-समय पर अपने लेख में लिखते हैं कि


सिरसा 12 अक्तूबर 2011.
1.) अन्ना को कांग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस विरोधी लोगों से घिरा हुआ लिख रहे है. जबकि अखबार में लेख लिखने वाले बुद्धिजीवी समय-समय पर अपने लेख में लिखते हैं कि PM कुछ कांग्रेस विरोधी लोगों से घिरे हुए हैं. कांग्रेस नेता को अखबार में छपे लेखों को पढ़ कर निर्णय लेने की देश व पार्टी हित हेतु आदत डालनी चाहिए. अँधेरे में तीर चलने से स्वयं नेता जी के साथ-साथ पार्टी व सरकार की छवि धूमिल ही होगी. 2.) विजय चोपड़ा जी, आपके अखबार ने अन्ना को लिखे PM के पत्र के देश हितैषी मुद्दों को अनदेखा करके मात्र 9 लाइनों में छापा, वहीं दिग्विजय सिंह के बेकार पत्र को PM से अधिक महत्व देते हुए 50 लाइनों में छापा. जाहिर है कि अखबार का देशहित से कोई लेना देना नहीं है की जितनी निंदा की जाए कम है.

कांग्रेस के नेता श्री B.K. प्रसाद कहते हैं कि अन्ना को भ्रष्ट लोगों ने घेर रखा है. अन्ना कहते है कि सख्त लोकपाल बनाओ भ्रष्ट लोगों को जेल भिजवाओ.


सिरसा 11 अक्तूबर 2011.
1.) कांग्रेस के नेता श्री B.K. प्रसाद कहते हैं कि अन्ना को भ्रष्ट लोगों ने घेर रखा है. अन्ना कहते है कि सख्त लोकपाल बनाओ भ्रष्ट लोगों को जेल भिजवाओ. कांग्रेस सख्त लोकपाल बना कर जिन भ्रष्ट लोगों  ने अन्ना को घेर रखा है उनको जेल भिजवाने से क्यों गुरेज़ कर रही है ? दाल काली है. 
2.) लगता है हिसार चुनाव में कांग्रेस ने अपनी हार मतदान से पहले मान ली है. इसलिए तो कांग्रेस के वरिष्ठ व कद्दावर नेता श्री दिग्विजय सिंह ने पहले ही कह दिया था कि चुनाव "राष्ट्रिय महत्व" का नहीं है. अब कांग्रेस ने इस चुनाव में दिल्ली, राजस्थान के CM, UP, के एक सांसद व केन्द्रीय मंत्री को बुला कर प्रमाणित कर दिया कि चुनाव नहीं जीता जा सकता. अजीब विडंबना है कि अपने प्रदेश में जो CM अपराधों को नहीं रोक सके वे हिसार चुनाव में कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे ? इसके साथ-साथ CM हरियाणा का अपनी विरोधी केंद्रीय मंत्री को बुलाना भी एक प्रमाण है कि कांग्रेस हार मान चुकी है.   
3.) आदरणीय करण थापर साहब, आपने अपने लेख में अन्ना सचेत नहीं है का निर्णय लेते हुए लिखा है कि "अब उनका भविष्य चंचल-चपल पत्रकारों के रहमो करम पर हैयदि वे उनके पक्ष में रहे तो सब ठीक-ठाक रहेगा परन्तु यदि विपरीत चले गए तो....?". आपने तो पत्रकारों का असली चेहरा देश के सामने रख दिया जिसके लिए बहुत-बाह्यत बधाई. आपके लेख ने मीडिया पर लगे आरोप जैसे "मीडिया भ्रष्ट, बिकाऊ, बेईमान, बेशर्म, दलाल, लालची, आदि-आदि" जिसे मीडिया के ईमानदार लोग बहुत पहले स्वीकार कर चुके है पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी. जिसके लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.   
सिरसा 10 अक्तूबर 2011.
भारत में सबसे ज्यादा आलोचना देश हित में क्रिया करने वालों की होती है. गाँधी जी का कतल व भगत सिंह को फांसी कैसे हुई दुनिया जानती है. आज भी ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं आतंकियों को फांसी न हो व सख्त लोकपाल न बने. स्पष्ट है कि देश को तबाह करने वालों का साथ व देश का हित चाहने वालों का विरोध करने वालों की भी कमी नहीं है. यही वजह है कि आज़ादी से पहले देश अंग्रेजों का गुलाम था वह आज भ्रष्टाचार का गुलाम है. इस घिनौने कार्य में हर वर्ग के लोग हैं. देश हितैषी अन्ना जी के साथ जो किया जा रहा है को तो देश देख ही रहा है. सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है कि जीत अच्छे लोगों की ही होती है. इसीलिए तो कहा जाता है"अच्छों का बोलबाला-बुरों का मुंह काला".  
सिरसा 09 अक्तूबर 2011.
आखिर कांग्रेस ने जैसी देश को उम्मीद थी हिसार चुनाव में अन्ना टीम से हाथा-पाई करके वैसा ही अपनी परम्परानुसार किया. लोकतंत्र का बात में ढोल पीटने वाली कांग्रेस समय-समय पर अपना असली चेहरा दिखा ही देती है. जब-जब कांग्रेस ने अपनी कथनी के विपरीत किया तब-तब कांग्रेस को उसका पूरा-पूरा खामियाजा भुगतना पड़ा. वास्तव में देश भी यही चाहता है कि कांग्रेस वही करे जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उसके विरोधी हो जाए और हिसार चुनाव में कांग्रेस ने ठीक वैसा ही किया. यानी अन्ना टीम के साथ धक्का-मुक्की करके कौन खोद लिया. जिसका पता कांग्रेस को चुनाव नतीजे आने पर ही चलेगा तब तक तो बहुत देर हो चुकी होगी. और देश भी ऐसा ही चाहता है. 

Tuesday, October 4, 2011

अन्ना की प्रेस वार्ता के बाद कांग्रेस में कितनी बेचैनी हुई वह उसकी ओर से आई प्रतिक्रिया से अपने आप स्पष्ट हो गई.


सिरसा 05 अक्तूबर 2011.
1.) अन्ना की प्रेस वार्ता के बाद कांग्रेस में कितनी बेचैनी हुई वह उसकी ओर से आई प्रतिक्रिया से अपने आप स्पष्ट हो गई. वहीं कांग्रेस की प्रतिक्रिया से यह भी लगा कि कांग्रेस न ही तो सख्त जनलोकपाल चाहती है तथा न ही उसने अपनी गलतियों से सबक लिया. फैसला अब भी देश की जनता ने ही लेना है.
2.) योजनाआयोगनुसार बड़े शहर में 32 व गाँव में 26 रूपये रोज खर्च करने वाले गरीब नहीं है. जिसके लिए योजनाआयोग के उपाध्यक्ष को न सिर्फ श्री राहुल गाँधी से डांट खानी पड़ी, बल्कि राष्ट्रिय सलाहकार परिषद् के सदस्यों ने तो त्यागपत्र तक मांग लिया. दूसरी ओर शहरों में करोड़ों अरबों खर्च करके बड़े-बड़े अस्पताल बना कर करोड़ों अरबों कमाते हैं को सरकार बेहद कम कीमत पर न सिर्फ जमीन देती है बल्कि "अखबार पंजाब केसरी" में छपे लेखनुसार साल 2011-12 में 1.74 लाख करोड़ की कस्टम ड्यूटी में छूट दे रही है. ऐसा क्यों ? इस तरह की या किसी दूसरी तरह की छूट कब से दी जा रही है व कितनी दी गई देश को सरकार अवगत करवाए. जिस तरह आए दिन नए-नए घोटाले देश के सामने आ रहे हैं से शंका होती है कि इन छूट के रूप में परदे के पीछे हो सकता है कोई घोटाला किया गया है. समय की मांग है कि इस मामले कि जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा करवाई जाए.
3.) विजय चोपड़ा जी आपने दिल्ली के उन 37 अस्पतालों बारे लिखा जिनको सरकार ने गरीबों का मुफ्त इलाज करने कि शर्त पर (जिसक पालन सभी नहीं कर रहे) बेहद कम कीमत पर जमीन दी. सरकार इनके विरुद्ध कारवाई करने के बजाए आपके लेखनुसार इन अस्पतालों को वर्ष 2011-12 के दौरान1.74 लाख करोड़ की कस्टम ड्यूटी में छूट देने जा रही है. इस छूट से पहले भी छुट दी होगी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. आपके लेखनुसार तो सिर्फ 2 छूट ही सामने आई है. इन 2 के अतिरिक्त कोई और छूट (किसी और रूप में दी गई) से इनकार नहीं किया जा सकता है. वास्तव में यह एक गहन जाँच का मामला है जो सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में ही होनी चाहिए. आप पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ देश के स्वास्थ्य मंत्री का भी ध्यान दिलवा देते तो अच्छा होता. मीडिया अपने स्तर पर इस देश हितैषी मामले की जांच करके देश को सत्य से अवगत करवाए का अनुरोध किया जाता है. 
4.) देश के रक्षामंत्री तालिबान को वहीं गृहमंत्री जी आतंक के बजाए नक्सलवाद को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं. लेकिन इनसे अलग अखबार पंजाब केसरी के E.I.C. श्री विजय चोपड़ा देश को तबाह करने के लिए चीन को सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं. देश का मानना है कि वास्तव में सबसे बड़ा खतरा राजनीतिज्ञों की भ्रष्टाचार,आतंकवाद, कालाधन, नक्सलवाद, मिलावटवाद, महंगाई आदि-आदि से निपटने की इच्छा शक्ति का ना होना है. सरकार चिंतित है बयान देकर काम चलाना चाहती है, जबकि दुनिया जानती है कि भ्रष्टाचार पर नकेल चिंता नहीं जनलोकपाल डालेगा. 
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सिरसा 02 अक्तूबर 2011.
1.) देश हितैषी अन्ना को घर से गिरफ्तार किया, फिर जेल भेज दिया. बाबा रामदेव प्रकरण में सोए हुए लोगों (बच्चे, महिलाएं, व बुजुर्गों) को बेरहमी से पीटना को लेकर कांग्रेस व सरकार ने कहा कि इसके अतिरिक्त सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था. जो किया पुलिस ने किया सरकार का इसमें कोई हाथ नहीं है. आज वही सरकार व कांग्रेस नेता गुजरात के एक IPS की गिरफ्तारी को लेकर कह रहे है कि यह मोदी की तानाशाही है, मोदी फासिस्ट है आदि-आदि. इससे तो यह अपने आप साबित हो जाता है कि दिल्ली में जो अत्याचार हुआ वह कांग्रेस व सरकार ने ही करवाया था. कांग्रेस व सरकार दोहरा मापदंड क्यों अपना रही है ?
2.) माननीय विजय चोपड़ा जी, आपके अखबार "पंजाब केसरी" को आज देखा तो लगा कि यह अखबार है या "इश्तियार". अखबार में छपे विज्ञापन से तो ऐसा स्पष्ट आभास हर किसी को हो सकता है. जाहिर है ख़बरों के बजाए अधिक से अधिक धन बटोरने के लालचाधीन यह सब कुछ हो रहा है. जिसमे पाठकों की जेब को समय-समय पर कीमत में वृद्धि करके बड़ी सावधानी से लूटा जाना शामिल है. यह हालत उस अखबार की है जिसका E.I.C. देश दुनिया को समय-समय पर उपदेश देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता. अखबार की इस धन बटोरने की नीति का हम निंदा व विरोध करते हुए मांग करते हैं कि पाठकों के साथ ज्यादा ख़बर देकर न्याय किया जाए. 
सिरसा 01 अक्तूबर 2011.
1.) श्री विजय चोपड़ा जी, "BJP में अंतर्कलह" शीर्षकाधीन जो छापा गया वह केवल मात्र मीडिया की सोच है. कार्यकारिणी की सभा में पार्टी ने प्रथम दिन क्या-क्या निर्णय लिए बारे आपका अखबार चुप क्यों  है ? क्या यह अखबार का अंतर्कलह है ? लगता है आपका अखबार भी अंतर्कलह से पीड़ित है. हो सकता है आपको भी देश के PM की तरह कुछ जानकारी न हो व इस बारे किसी ने आपको कुछ बताया भी नहीं होगा. कुछ भी हो ख़बर के प्रति आपके अखबार का नीरस रवैया निंदा योग्य है. 
2.) श्रीमान पुंज साहब, "वोट के बदले नोट" मामले में आपके सांसद जेल में पड़े रो रहे हैं, आपकी पार्टी की हालत तो ऐसी है जैसे"जूतों में दाल बंट रही है" को अनदेखा करके आपने समाजहितैषी अन्ना को बदनाम करने की घिनौनी मंशा को लेकर जो कुछ लिखा की जितनी निंदा की जाए कम है. शीशे के घर में रहने वाले को उन पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए जो किल्ले में रहते हो. 
सिरसा 30 सितम्बर 2011.
माननीय विजय चोपड़ा जी, देश जानता है कि टैक्स ज्यादा या कम करने का अधिकार वित्त मंत्री का है न कि गृह मंत्री का. लेकिन फिर भी जैसे ही गृह मंत्री ने बड़े लोगों पर टैक्स बढाने का विचार प्रकट किया आप उसको सहन नहीं कर पाए और सरकार को चेतावनी तक दे डाली कि "अगर बड़े लोगों पर टैक्स बढाया तो ऐसे में टैक्स चोरी में वृद्धि होगी, काले धन की समस्या बढेगी, जिसने पहले ही सरकार की नाक में दम कर रखा है." मिसाल अमेरिका के देश हितैषी व दानी वारेन बफे की दी जा रही है, वही लेख सरकार को चेतावनी देते हुए "काले धन धारकों" की मदद में उस समय लिख रहे हो जब देश के 80% लोगों की आमदनी 20 रूपये से भी कम है. कुछ लोग आतंकियों को फांसी देने का विरोध करके उनका साथ दे रहे है, वैसे ही आप टैक्स को लेकर कालाधन धारकों (आर्थिक आतंकियों) का साथ दे रहे हो. आपके इस गरीब विरोधी लेख की जितनी निंदा की जाए कम है.निंदा सहित,